सावन की रिमझिम ये बरसात है,
हमारी तुम्हारी नई ये मुलाकात है l
भीगे से तुम हो और भीगे से हम
सुलगते हमारे नये से ज़ज्बात हैं l
बाहों में जब तुम सिमटने लगे,
सिमटने लगी सारी कायनात है l
घर से चले हमें तो पता ही ना था,
तुम्हारा यूँ मिलना अकस्मात है l
तुम्हीं से शुरू है,तुम्हीं पर ख़तम,
तुमको जिया हमने दिन रात हैl
सपने जो देखे हैं इस बरसात में
ख्वाहिश हमारी अभी नवजात है l
नेकी बदी को भी पहचानो जरा
दिनों की नहीं ये ताल्लुकात है l
हमको क्या चाहोगे हरदम सदा,
सीधे हमारे ये बस सवालात हैं l
विजय प्रकाश श्रीवास्तव (c)