मेरे प्यारे दोस्तों, सुनो ये बात, सूरज और चाँद हैं संगी-साथ। सागर और आकाश हैं करीबी मीत, पर मिलन न हो, ये कैसी रीत?
क्यों नहीं मिल पाते वे कभी? क्योंकि ये रचना है ईश्वर की। प्रभु का अपना एक ही धर्म, जीवों के जीवन का सारा कर्म। जीवन चले इसलिए ये जीव, मिल न सकें, हैं बने सजीव।
बंधन तो है बहुत ही खास, ईश्वर, सूर्य, सागर के पास। क्षमा करना, मैं कह न सका, अब मैं बताता हूँ, क्या है उनका पता।
तुम मेरी बात सुनो, हाँ! मैं तुम्हें बताता हूँ, सुनो ज़रा। सूरज, चाँद, सागर और आकाश, करते हैं अपना कर्तव्य हर साँस।
वे काम न छोड़ें कभी भी, न करें ड्यूटी आधी कभी। पूरा दिन, हर पल करते काम, इसलिए मिलन को नहीं है नाम।
तो फिर क्यों मानव करे न कर्म? क्यों भूला अपना जीवन-धर्म? अति दुखद, है बड़ा अफ़सोस, हाय! मेरा मित्र हुआ है लोप!!
- ललित दाधीच

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



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