रोती तो नहीं हूं मगर मुस्कुराना भूल गयी हूं....
पहले की तरह अब मैं जीना भूल गयी हूं....
जाने किस बात में खोई सी रहती हूँ...
खामोश रहने लगी हूं...
बक बक भूल गयी हूं.....
लोगों से अब दिल मेरा शिकायत नहीं करता...
कोई है भी क्या अपना मैं ये भी भूल गयी हूं....
रोती तो नहीं मगर मुस्कुराना भूल गयी हूं...
कवियित्री - शिवांगी यादव जी