करोगे जैसा कर्म वैसा ही फल पाओगे
कर्म चक्र को आंखो के सामने अपनी घूमता हुआ तुम पाओगे।
याद कर अब वो मंजर
घोपा था जब तूने किसी की पीठ मे खंजर।
बूढी मां का हाथ पकड़कर जब तूने घर से निकाला था
कर बंद दूर एक कमरे मे तूने ताला डाला था।
निकल गया उसका तो दम
फिर भी तुझे ना था कोई भी गम।
कर्मो का चक्र अब घूम चुका।
वक्त्त भी अब तो झूम चुका
अब तू बूढी है
तेरा बेटा अब जवान है
तुझ जैसी हस्ती वो भी महान है।
हाथ पकड़कर वो तेरा आज तुझको घर से निकाल रहा
कही दूर बने उस कमरे मे तुझको आज वो डाल रहा।
सुन ना रहा वो तेरी चीख पुकार
कर रहा वो तुझ पर ही धुतकार
तू भी आज एक मोहरा है
गया इतिहास दोहरा है।
-राशिका