कर्म चक्र के दलदल में, धंसते धंसते तू धंस जाएगा।
अपने ही काली करतूतों में, फंसते-फंसते तू फंस जाएगा।
अंकी, इंकी ,डंकी लाल, लगा ठहाके किस्मत पर।
बाजी पलट गई है, हंसते-हंसते तू मर जाएगा।
गरीबों की हाय, तुझे लग गई।
समझो ,तेरी लंका तो ढह गई।
एक-एक भ्रष्टाचारी को, घसीटाराम घसीटा काल कोठरी तक पहुंचायेगा ।
संपत्ति होगी जब्त, बाबा बुलडोजर चलवायेगा।