आज चीखती है गौरैया।
तड़प रहीं हैँ सभी चिरैया।।
दाने दाने को मरते सब।
कलरव पीड़ित दिखता है अब।।
कौवा कोयला हांफ रहे अब।
साँप छछुन्दर विलख रहे अब।
नहीं दीखता मोर नाचता।
धूप प्रभावित शेर कांपता।।
जंगल कटता चला जा रहा।
दूषित वातावरण आ रहा।।
पक्षी रोते निर्मल जल बिन।
हाहाकार मचा है वट बिन।।
गायें मारी मारी फिरतीं।
चारा बिना हमेशा मरतीं ।।
बिना घोसला पक्षी बेघर।
खाते रहते ठोकर दर दर।।
काव्य रत्न
डॉक्टर रामबली मिश्र