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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayra By Reena Kumari PrajapatDastan-E-Shayra By Reena Kumari Prajapat

कविता की खुँटी

                    

कल रहूं या ना रहूं

मेरी ज़िंदगी का कोई भरोसा नहीं,
एक पल में क्या हो जाये ये ख़ुद मुझे पता नहीं।
कहते हो तुम, आ जाना,
पर मैं कैसे हां कर दूं
कल रहूं या ना रहूं जब ये मुझे पता नहीं।

दुआ करना कि हम रहें तब,
ज़रूरत हो तुम्हें हमारी जब।
रहे सलामत हम,तो चले आयेंगे,
तुम पुकारोगे जब।

आना तो हम भी चाहते हैं,
पर वादा नहीं करना चाहते हैं।
क्योंकि ज़िंदगी ने हमें इस क़ाबिल
छोड़ा नहीं कि हम वादे करे,
और वादे हम नहीं तोड़ना चाहते हैं।

हो सके हम आ ना पाए उस दिन,
हो सके हम ना रहे उस दिन,जब हो उसका जन्मदिन। उसके लिए तोहफ़ा भिजवा दिया है तुम तक,
हमारा नाम उसे बताकर दे देना उसे उस दिन।

जानते हैं ग़र हम ना आ सके उस दिन,
चैन से जी यहां भी नहीं पाएंगे हम उस दिन।
क्योंकि जिस तरह मछली नहीं पानी के बिना,
उसी तरह हम भी नहीं तेरे बिना।
पर कमबख़्त ज़िंदगी है कि साथ देती नहीं,
जिस तरह तू ,उसी तरह अधूरे तो हम भी है तेरे बिना।

मेरी ज़िंदगी का कोई भरोसा नहीं,
एक पल में क्या हो जाये ये ख़ुद मुझे पता नहीं।
कहते हो तुम, आ जाना
पर मैं कैसे हां कर दूं,
कल रहूं या ना रहूं जब ये मुझे पता नहीं........

* रीना कुमारी प्रजापत




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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (3)

+

Bhushan Saahu said

Aapki rachna m ek judav sa rhta ha sbse.bahut achaa likhti hai aap.

रीना कुमारी प्रजापत replied

धन्यवाद!

Lekhram Yadav said

आप कल हो या न हो मेरी प्यारी बहना, मगर आपकी यह कविता लोगों के जहन में जरूर रहेगी।

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' said

Bahut achha likha bhavuk kar diya aapne...Pranam sweekar karein🙏🙏🙏

रीना कुमारी प्रजापत replied

प्रणाम🙏 शुक्रिया

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