ज़ख्म ऐसा हो,
जो मरहम बने,
अनजान सा कोई अपनापन बने,
झांक कर अपने हिस्से को,
अपने किरदार का,
हल्का सा कोई नया ढंग बने,
रंग बू और आदत कोई निशां नहीं,
पर चेहरे का ना बदले,,
कोई हँसने से बने या ना बने,
मग रोने का ढंग ना बदले।।
New रचनाकारों के अनुरोध पर डुप्लीकेट रचना को हटाने के लिए डैशबोर्ड में अनपब्लिश एवं पब्लिश बटन के साथ साथ रचना में त्रुटि सुधार करने के लिए रचना को एडिट करने का फीचर जोड़ा गया है|
पटल में सुधार सम्बंधित आपके विचार सादर आमंत्रित हैं, आपके विचार पटल को सहजता पूर्ण उपयोगिता में सार्थक होते हैं|
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रंग बू और आदत कोई निशां नहीं,
पर चेहरे का ना बदले,,
कोई हँसने से बने या ना बने,
मग रोने का ढंग ना बदले।।