ज़ख्म ऐसा हो,
जो मरहम बने,
अनजान सा कोई अपनापन बने,
झांक कर अपने हिस्से को,
अपने किरदार का,
हल्का सा कोई नया ढंग बने,
रंग बू और आदत कोई निशां नहीं,
पर चेहरे का ना बदले,,
कोई हँसने से बने या ना बने,
मग रोने का ढंग ना बदले।।
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Dastan-E-Shayara By Reena Kumari Prajapat

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ज़ख्म ऐसा हो,
जो मरहम बने,
अनजान सा कोई अपनापन बने,
झांक कर अपने हिस्से को,
अपने किरदार का,
हल्का सा कोई नया ढंग बने,
रंग बू और आदत कोई निशां नहीं,
पर चेहरे का ना बदले,,
कोई हँसने से बने या ना बने,
मग रोने का ढंग ना बदले।।
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