छोड़ आई मैं वो घर,
जहाॅं सुबह मेरी मुस्कुराहट से
हुआ करती थी। (2)
छोड़ आई मैं वो शहर,
जहाॅं मेरी बड़ी इज़्ज़त हुआ करती थी।
आज भी बड़ी ही इज़्ज़त है उस शहर में मेरी,
आज भी बड़ा ही मान सम्मान है उस घर में मेरा।
बस अब कुछ लोग ऐसे आ गए हैं उस घर में, जिन्होंने बहुत दिल दुःखाया है मेरा।
छोड़ आई मैं वो रिश्ते नाते,
जिन्हें अपनी जान से ज्यादा
प्यार करती थी मैं।(2)
छोड़ आई मैं उन्हें,
जिन्हें अपनी आंखों से एक पल भी
दूर ना होने देती थी मैं।
आज जो अपनों से दूर हूॅं मैं,
ये सब उस नाचीज़ की करनी है।(2)
आज उस कमबख़्त की वजह से,
मेरी आंखों में पानी ही पानी है।
छोड़ आई मैं वो गली मोहल्ला,
जहाॅं हर रोज लोग अपने दिन की शुरुआत
मेरी सूरत देखकर किया करते थे।(2)
छोड़ आई मैं वो खेत खलिहान,
जो मुझे बहुत प्यारे थे।
अब पता नहीं,
वो घर, वो गली मोहल्ला
फिर मिलेगा या नहीं।(2)
वो खेत, वो खलिहान,
मेरी गैर मौजूदगी में
फिर खिलेगा या नहीं।
"रीना कुमारी प्रजापत"