हास्य -व्यंग्य
काला नाग
डॉ. एच सी विपिन कुमार जैन "विख्यात"
दूध पिलाया था नाग को, सोचा बनेगा वह साधु,
पर वह तो निकला बड़ा विषधरा, बन गया वह जादू।
अंकी, इंकी, डंकी, तीनों थे ऐसे नाग,
जो मीठा बोलकर करते थे सबके दिल में आग।
बाधा पहुँचाने में थे ये तीनों बड़े माहिर,
काम न करते, बस लोगों को करते थे घायल।
ऑफिस में बैठकर, करते थे बस बातें,
और पीछे से सबकी, लगाते थे वाटें।
झूठी फाइलें बनाते, झूठे दस्तावेज,
और बन जाते थे मालिक, पहनकर झूठे ताज।
लोग कहते थे, ये हैं बड़े कर्मवीर,
पर वे तो थे बस, लूट-खसोट के पीर।
पर कहते हैं, बुराई का अंत होता है,
झूठ का पुलिंदा कभी टिकता नहीं।
एक दिन खुला इनका राज,
और सब लोगों ने मिलकर, इनको सिखाया सबक।
अब वे बेचारे, भटक रहे हैं,
और लोगों की दुआएँ, काम आ रही हैं।