कभी-कभी दिल ख़ुद से, ये सवाल करता है
फ़िज़ा जैसी हों सभी, क्यों नहीं कोई ख़्याल करता है
जैसे चलती है हवा, सभी के वास्ते मगर
ख़ुदग़र्ज़ क्यों नहीं ख़ुदग़र्ज़ी पर, मलाल करता है
अब तो सरफ़रोशी की तमन्ना, धंस गई ग़ुबार में
ख़ुद जीने की ख़ातिर दूसरों को, क्यों हलाल करता है