जिंदगी में यूं आंधियां चलती हैं कभी कभी
ये खूबियां ही खामियां बनती हैं कभी कभी
ठीक होने के लिए हर रोज खाते है बहुत सी
खुद ये दवाई बीमारियां बनती हैं कभी कभी
सात समन्दर पार कर कश्तियां तो आ गईं हैं
वही किनारों की डूबियां बनती हैं कभी कभी
कौन जाने कितना बाकी अभी हमारा सफर
दास दिल की मजबूरियां बनती हैं कभी कभी
प्यार नफ़रत वफ़ा बेवफा महज लफ्ज नहीं हैं
क़त्ल करने की ये छुरियां बनती हैं कभी कभी II