बदल न सके बाकी रह गए रिवाज कुछ।
बहकाती रही यादें करते रहे रियाज कुछ।।
स्वप्न जैसे तुम मिले मैं निशा रानी तुम्हारी।
कैसे कहे कांटो जैसे चुभते रहे राज कुछ।।
सब से खूबसूरत वेला ख्यालो में आगमन।
कल की बाते दफ़न हुई सताये आज कुछ।।
उषा आई जरूर सोये पोखर की बाहों में।
राग मल्हार सा गूँजता कानो में साज कुछ।।
मोहब्बत में बताओं तुम्हें प्रभात प्रसून कहूँ।
या और कुछ 'उपदेश' दीवानी आगाज कुछ।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद