झमाझम बारिश ने धरती के तपन को तो
कम कर दिया
पर सरकार के काम काज का पोल खोल कर रख दिया।
पहले लोग तपन से जल रहे थे अब लोग
नदियों नालों की ऊफान से डर रहें हैं।
बड़े बड़े शहरों में सड़कें धस रहीं है
और जल भराव से गलियां गीली पड़ीं हैं।
करोड़ों रुपए के निगमों के बजट का कोई हिसाब नहीं ।
जो जैसा था ठीक वैसा हीं है कोई बदलाव नहीं ।
साल दर साल वही सवाल है और एक बारिश में हीं जीना मुहाल है।
शहरों की नालियां चोक पड़ीं हैं।
खुली मुंह वाली गटरें मौतों को दावत दे रहीं हैं।
जमाझम बरसात ये कानों में कह गईं
कि जिनके घर सीमेंट कांक्रीट रेत के भी हों तो क्या मुझसे बच नहीं सकतीं।
है यह पानी का तीव्र वेग शीतलता
यह किसी को भी ठंडा कर सकतीं हैं।
जल भराव का हिसाब कौन देगा
और इससे उत्पन्न बीमारियों का खर्च कौन देगा।
और पानी से लबालब सड़को पर होने वाली मौत से कैसे कोई बचेगा।
थोड़ी सी बरसात क्या हुई गाड़ियों में ब्रेक सा लग जाता है।
पंद्रह मिनट की दूरी तय करने में डेढ़ घंटे लग जाता है।
आदमी की लाईफ अस्त व्यस्त हो जाता है।
किसी की ऑफिस तो किसी का स्कूल मिस हो जाता है।
और ऑफिस में बैठा बॉस बरसती बरसात में भी उलेहनाओं की आग बरसता है।
बरसात और बारिश सिर्फ़ घर में हीं अच्छा लगता है।
रेहड़ी पटरी वालों की तो जीविकोपार्जन तक झीन जाता है।
तो है यह निवेदन सभी मातहातों से की अभी तो शुरुआत है अभी बाकी पूरी बरसात है।
कुछ व्यवस्था संभाला जाए।
और पूरी बरसात आने से पहले नदी नालों की उड़ाही किया जाए।
जिम्मेदारियों को निभाया जाय।
और बरसात को अभिशाप नहीं बनाया जाए।
है ये बरसात का मौसम प्यार का मौसम
इसे प्यार तक हीं सीमित रक्खा जाए..
बरसात में मुसीबत मोल नहीं
सिर्फ़ आनंद हीं आनंद उठाया जाए।
बारिश का आनंद लिया जाय...
बारिश में सिर्फ़ प्यार किया जाए..
बारिश को खुल के जिया जाए...
बारिश का सिर्फ़ मज़ा लिया जाए..
बारिश को खुल कर जीया जाए....
बारिश का सिर्फ़ मज़ा लिया जाए...