विचार चलते रहते आँखों से उतरता नही।
एक शख्स है जिससे मेरा जी भरता नही।।
काश गुफ़्तगू हो जाती मेरा मलाल जाता।
बहता दरिया सा मन शांत हो पाता नही।।
तन्हा बैठकर अपने इष्ट को निहारता मन।
बेवजह आसक्ति में परिक्रमा लगाता नही।।
ख्वाब में डूबकर जिसका बदन सहलाती।
आलौकिक शांति देने को गले लगाता नही।।
प्रेम की पहचान में अनभिज्ञ नही थी कभी।
फिर भी 'उपदेश' गंगा को हाथ लगाता नही।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद