पैसा जोड़ते हैं,ज़मीन जायदाद बनाते हैं
यह सोच कर कि सदा आत्मनिर्भर रहेंगे
फिर भविष्य में किसी की क्या जरूरत हमें
अपनी सेवा के लिए नौकर रखेंगे
अपने बच्चों ,रिश्तेदारों से कोई उम्मीद नहीं रखेंगे
अपनी मर्जी से जीवनयापन करेंगे
पैसे के बल पर इतना अहम् रख लेते हैं
पर भूल जाते हैं कि
कोई तुम्हें हाथ पकड़ कर घुमा सकता है
तुम्हारी बहुत सी जरूरतें पूरी कर सकता है
लेकिन उस दर्द का क्या ?
उन भावनाओं का क्या ?
उस अकेलेपन का क्या ?
जो उस उम्र में सिर्फ़ तुम्हारे होंगे
जिन्हें तुम किसी को भी,कैसा भी लालच देकर बाँट नहीं सकते
न ही कोई चाह कर भी तुम्हें उनसे आज़ाद करवा पाएगा
पैसे के साथ पुण्य कर्मों के लेख भी जोड़ लेना
उम्र के आखिरी दौर में पैसा काम आए या न आए
संजोय हुए पुण्य कर्म जरूर साथ निभा जाएँगे..
वन्दना सूद