दांव उसने फिर बड़ा गहरा चला है
रोज ही किस्मत ने हमको छला है
क्या मिलेंगी यूं मंजिले उसको भला
जिन्दगी में वो कदम तो इक चला है
टूट जाती हैं सारी इमारत एक दिन
सदा सलामत हैं कहां वो घर बना है
राह चुनती हैं अपनी मरजी से दुनियां
नाम दूजे का उठे ये किसको जंचा है
दास कितना भी रहेगा कोई नेक इंसा
पर पीठ पीछे तो बुरा ही सबने कहा है...