दिल जलाने वाले मंजर बार बार देखे हैं
जिन्दगी के तल्ख़ तेवर हजार बार देखे हैं
एक पत्थर की मानिंद चुपचाप सहते रहे
मुल्क की अस्मत पे चोतरफ़ा वार देखे हैं
कबूतर शान्ति के आसमां में छोड़के पुनः
उनका खुद ही करते फिर शिकार देखे हैं
ये बात और कि हम पर उन्हें यकीन नहीं
उसके दिलके कहाँ से किसने तार देखे हैं
मुझसे बढ़के कौन नादान है कायनात में
दास जिसने रूहके अक्सर सितार देखे हैं....