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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayra By Reena Kumari PrajapatDastan-E-Shayra By Reena Kumari Prajapat

कविता की खुँटी

                    

हम थोड़ा सा चुप क्या हुए यूँ अपने आप में-ताज मोहम्मद

हम थोड़ा सा चुप क्या हुए यूँ अपने आप में।
तुम हम पर ही झूठी तोहमत लगाने लगे।।1।।

जरा सा गुरबतों से पाला क्या पड़ा जिंदगी में।
तुम अपना असली रंग हमे दिखाने लगे।।2।।

कभी मिलनें के लिए हमसे जो बेताब रहते थे।
ना मिलनें के वह सब बहाने बनानें लगे।।3।।

मिलनें से पहले हमसे जो जीते थे गरीबी में।
वह बाज़ारों में पैसों से पैसा बनाने लगे।।4।।

कसमें खाते थे जो हर वक़्त मेरी वफ़ादारी में।
वही अब निस्बतों से मेरी दूर जानें लगे।।5।।

थकते ना थे जो हाथ सालमें अदब में हमारें।
मेरी हस्ती को वही सब मिटाने चले है।।6।।

दीवारों दर के ज़र्रे-ज़र्रे से पूँछों इस कोठी के।
ऐसे ना टूटेगी इसको बनाने में जमाने लगे।।7।।

इक लम्बा वक्त जिया है हमनें मेरी गर्दिशों का।
वह मुझें जीने का सलीका सिखाने लगे।।8।।

ताज मोहम्मद
लखनऊ




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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (2)

+

Lekhram Yadav said

वाह क्या रचना र वाह ताज भाई क्या खूबसूरत नजारा लोगों की फितरत का पेश किया है। पेश किया है।

ताज मोहम्मद replied

बस आप लोगों का मार्गदर्शन है भाई जी शुक्रिया।

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' said

Bahut uttam super duper sir ji

ताज मोहम्मद replied

आपकी नज़र है बस। शुक्रिया।

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