वाणी मीठी, कर्म में,
जीवन वैसा,
जैसी, खुद की बनावट।
दया धर्म, कर्म का सार,
समाज सुखी, यही सच्चा प्यार।
ईर्ष्या द्वेष, कलह का जाल,
अपने ही कर्म जलाते ज्वाल।
सत्य निष्ठा, कर्म का मार्ग,
जीवन सफल मिलता है,
करता भवपर।
कर्मफल की गति निराली,
चाहे देर, पर ज़रूर आली।
इसलिये हर पल, सजग रहना,
कर्म नेक, सदा करते रहना।