दुबक छिपा है कहीं न कहीं
सौर किरन सा सुनहरापन
करके युद्ध घोर तिमिर से
भरसक निकलना होगा
हो प्रविष्ट सब निंद्रनयन में
अचल विचल सब धरा गगन में
कभी न कभी, कहीं न कहीं
अथक निकलना होगा
नवदीप जलेगी,नयी राह बनेगी
पुनः जगेगी, नवल नयन में
नयी नयी विश्वास
तभी प्रकृति में होगी पूरी
नयी सुबह की तलाश
कहीं न कहीं तो छिपा हुआ है
चिनगारी बलिदान की
बूझी राख की ढेरों से
औचक निकलना होगा
हो प्रविष्ट युव -हिम -हृदय में
रक्त अग्नि सा अपनी लय में
कभी न कभी, कहीं न कहीं
अकट जलना होगा
पुनः पिघलेगी परत स्वार्थ की
नवल हृदय में,नयी नयी लय में
होने लगेगी खास
तभी प्रकृति में होगी पूरी
नयी सुबह की तलाश।।
सर्वाधिकार अधीन है