दुबक छिपा है कहीं न कहीं
सौर किरन सा सुनहरापन
करके युद्ध घोर तिमिर से
भरसक निकलना होगा
हो प्रविष्ट सब निंद्रनयन में
अचल विचल सब धरा गगन में
कभी न कभी, कहीं न कहीं
अथक निकलना होगा
नवदीप जलेगी,नयी राह बनेगी
पुनः जगेगी, नवल नयन में
नयी नयी विश्वास
तभी प्रकृति में होगी पूरी
नयी सुबह की तलाश
कहीं न कहीं तो छिपा हुआ है
चिनगारी बलिदान की
बूझी राख की ढेरों से
औचक निकलना होगा
हो प्रविष्ट युव -हिम -हृदय में
रक्त अग्नि सा अपनी लय में
कभी न कभी, कहीं न कहीं
अकट जलना होगा
पुनः पिघलेगी परत स्वार्थ की
नवल हृदय में,नयी नयी लय में
होने लगेगी खास
तभी प्रकृति में होगी पूरी
नयी सुबह की तलाश।।
सर्वाधिकार अधीन है

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




