सहज हो,सरल हो पर ओजस्विनी हो तुम
बेबसी से बेबस हो पर मनस्विनी हो तुम
कहीं -कहीं क्षेत्रियता से ग्रस्त हो
तो कभी राजनीति का अस्त्र हो तुम
हां कोमल सी हो पर कईयों का शस्त्र हो तुम
उस राष्ट्र की राजभाषा हो जहां
दिन विशेष पर सब तुम्हे याद करते है
अन्यथा तुम्हारे उच्चारण मात्र से तेरे भाषी डरते है
उस दिन तेरे लिए प्रेम ज्वाला जगती है
तब सबको प्राणों से तू प्रिय लगती है
रक्षा -वचन दिए जाते है
बात चली है तुझे विश्व तक लेकर जाएंगे
मातृभाषा तो मान नही पाए और राष्ट्रभाषा बनाएंगे
अगर तुम त्रस्त हो आज तो डरी हुई मै भी हूं
अगर कहीं गुम हो रही हो तो चुप मैं भी हूं
प्रश्न तुझसे है
क्या अपने संग मेरा अस्तित्व बचा पाओगी?
या एक विदेशी भाषा तले ओझल रह जाओगी?