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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayra By Reena Kumari PrajapatDastan-E-Shayra By Reena Kumari Prajapat

कविता की खुँटी

                    

पेड़ की आंखें

आने वाली सदी की
आंसुओं को, अपने आपमें
समेटकर रखी हुई है
पेड़ की निस्तब्ध आंखें

अपनी अदृश्य पलकों से
विवश हो,थकी सी, मुरझाई
आने वाली बर्बादी का
इंतजार कर रही है
पेड़ की सूखी आंखें

अपनी धड़ से, गर्दन के
अलग होने का
सामने अंधकार में
सदा के लिए सोने का
सहमें,डरे, किंकर्तव्यविमूढ़
उल्टी गिनती गिन रही है
पेड़ की शान्त, ढंकी आंखें।
(कविता का मूल भाव पेड़ों की रक्षा करें)


यह रचना, रचनाकार के
सर्वाधिकार अधीन है


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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (4)

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अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' said

यह रचना प्रकृति और पेड़ों की कष्टदायक स्थिति को बखूबी दर्शाती है। पेड़ों की आँखों के माध्यम से उनकी मूक वेदना, उत्पीड़न और नष्ट होने की डरावनी स्थिति को उजागर किया गया है - आपको सादर प्रणाम

मनोज कुमार सोनवानी "समदिल" said

अशोक जी इतनी प्यार भरी,गहरी और उत्कृष्ट प्रतिक्रिया के लिए सहृदय धन्यवाद। आपकी इतनी अच्छी समीक्षा हमारी जिम्मेदारी और बढ़ा देती है और अच्छी रचना लिखने के लिए प्रेरित करती है।आपको सादर नमस्कार, अभिनंदन!

सुभाष कुमार यादव said

बहुत सुंदर रचना समदिल सर जी। पेडों का मानवीकरण कर उनकी पीड़ा के माध्यम से मनुष्य को सजग करने का सार्थक प्रयास। आपकी इस रचना को पढ़कर सुमित्रानंदन पंत की एक रचना 'वे आँखें' जिसमें कृषक जीवन की पीड़ा का वर्णन किया है याद आ गयी। 👌👌🙏

मनोज कुमार सोनवानी "समदिल" said

सुभाष जी, इतनी सुन्दर,लगाव भरी, प्यार भरी प्रतिक्रिया के लिए आपको हृदय से धन्यवाद। आगे हमारी यही कोशिश होगी कि सुंदर भावभरी कविता आपसे साझा करें।सादर अभिवादन।

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