कितनी सारी यादें लिए
जा रहा दिसम्बर
आएगा जब अगले साल
फिर यही समां होगा
फ़र्क बस इतना होगा
तब दो हजार पच्चीस बनकर
एक साल और बड़ा होगा
हमें भी उसकी यादों के थैले में
देने को और कुछ नया होगा
उसके तो आने-जाने का सिलसिला
अनवरत लगा होगा
फिर वक्त की धारा में
जब कभी हम रवाँ होंगे
धुआँ बनकर वज़ूद अपना
गवाँ चुके होंगे
उस साल हमारा हीं नहीं
उससे सामना होगा