सूरज से रोशनी लेकर चाँद चमका।
मौका देखकर वही चाँद आ धमका।।
नज़ारा देखकर मन गौरवांवित हुआ।
जैसे ही थामी कलाई रक्षाबंधन हुआ।।
नदी में उफान आया सागर से मिली।
सागर भावुक हुआ बादल में समाया।।
हवा उड़ाकर ले गई दूर बहुत दूर उसे।
होश जब आया तो उसने गले लगाया।।
हकीकत में तब प्रेम के झरने फूट पड़े।
फसलें लहलहाई 'उपदेश' करार आया।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद