कृषक परिश्रम की प्रतिमा है,
सहज सरल जीवन जीता है।
रूखी-सूखी रोटी खाकर,
हंसकर ठण्डा जल पीता है।।
कठिन दोपहरी, भीषण गर्मी,
ताप रवि का सह लेता है।
भारत का दीन अन्नदाता,
छप्पर के नीचे रह लेता है।।
देश स्वस्थ, खुशहाल बनाता,
सबका जो भरता है पेट।
किंतु आज तक उस किसान को,
श्रम के लिए मिली न भेंट। ।
सरहद पर दुश्मन से लड़ते,
सैनिक पुरस्कार पाते हैं।
अक्सर वीर शहीद हुए हैं,
या फिर वीरगति पाते है।।
उद्यम करके अन्न उगाता,
प्राणों की रक्षा करता है।
फिर भी कृषक शहीद न होता,
श्रमिक अन्नदाता मरता है।।
श्रमिक अन्नदाता मरता है।।
Shikha Prajapati
Kanpur dehat