वक़्त के हाथ चेहरों पे रोज़, नई रेखाऐं उकेर रहे..
उज़ाले भी अब आंखों से अपनी, निगाहें फेर रहे..।
ज़मीं को तो मालूम है, उसके दर्द की वजहें क्या..
मगर आसमां को अब, कई अनजाने गम घेर रहे..।
चेहरे की उदासी, हंसते मुखौटों से भी छुपती नहीं..
मेरी नम आंखों में अब भी, उम्मीद के ख़्वाब तैर रहे..।
यूं तो हर लिहाज़ से दुनिया, मेरे मुआफ़िक थी मगर..
वो भी कुछ लम्हे थे, जहाँ में रहे मगर तेरे बगैर रहे..।
आंसुओं की नदी के उस पार, कुछ रोशनियां सी हैं..
वो हम ही हैं जो दर्द में भी, हंसी के मोती बिखेर रहे..।
पवन कुमार "क्षितिज"