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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayra By Reena Kumari PrajapatDastan-E-Shayra By Reena Kumari Prajapat

कविता की खुँटी

                    

जान बाकी है मेरी जब तक उसकी जान है

जान बाकी है मेरी, जब तक उसकी जान है,
वो जान है मेरी,फिर उसके बिना कैसे मेरी जान है।
दो जिस्म एक जान हैं हम,एक दुसरे के बिना कुछ भी नहीं है हम,
जान बाकी है मेरी जब तक उसकी जान है,
उसके बिना तो मेरी जान भी बेजान है.....

जान बाकी है मेरी,जब तक उसकी जान है,
वो ज़िंदगी है मेरी,फिर उसके बिना कैसे मेरी ज़िंदगी है।
उसके बिना तो ज़िंदगी मेरी जैसे शमशान है,
जान बाकी है मेरी जब तक उसकी जान है,
उसके बिना तो मेरी जान भी बेजान है......

जान बाकी है मेरी,जब तक उसकी जान है,
वो दिल है मेरा फिर,उसके बिना कैसे रहूं मैं ज़िंदा।
उस दिल के बिना हूॅं मैं कहां,
जान बाकी है मेरी जब तक उसकी जान है,
उसके बिना तो मेरी जान भी बेजान है.......

जान बाकी है मेरी,जब तक उसकी जान है,
वो सांसें है मेरी, फिर उसके बिना चलती भला कैसे मेरी सांसें।
धड़कता है दिल में वो मेरे,फिर वो नहीं तो भला धड़केगा ये दिल कैसे,
जान बाकी है मेरी जब तक उसकी जान है,
उसके बिना तो मेरी जान भी बेजान है.......

"रीना कुमारी प्रजापत"




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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (3)

+

Lekhram Yadav said

जब प्रेयसी की जान प्रेमी में अटकी है और ये जिन्दगी राह से भटकी है। क्या खूबसूरत, रचना है आपकी। वाह।

रीना कुमारी प्रजापत replied

शुक्रिया🙏🙏🙏 प्रणाम

Ankush Gupta said

Waah...itna sundar sbdo ka mail ha. Bahut achhe ..

रीना कुमारी प्रजापत replied

Thanku so much gupta ji

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' said

Nihshabd Is Rachna K liye...Isme Itni Jaan jo daal di hai aapne

रीना कुमारी प्रजापत replied

धन्यवाद 🙏

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