गर्दो–गुब्बार में गुम सा, शहर इन दिनों..
सांसों के जरिए उतरता, जहर इन दिनों..।
ज़माना तो, बख़्श भी देगा मुझको मगर..
बड़ा बेरहम है, हवा का कहर इन दिनों..।
गहरी सांसों का दिल में, एक डर है कायम..
सब घुलमिल से गए हैं, ये पहर इन दिनों..।
समन्दर की शक्ल भी, कितनी बदल गई है..।
चेहरा उसका बार बार धोती है, लहर इन दिनों..।
अब कहां जाकर, अपने दिल को बहलाए हम..
सुकून अब देता नहीं है, हमको घर इन दिनों..।