हमारा अदब भी, इम्तिहान से गुज़रा..
बेसब्र आफ़ताब, आसमान से गुजरा..।
कुछ फूल खिले हैं, इस सहरा में भी..
आख़िर कौन, इस मुकाम से गुजरा..।
उसने जाते जाते, पीछे मुड़कर देखा..
आज वो जाने किस गुमान से गुज़रा..।
तेरे शहर के हालात, कितने बदल गए..
गुज़रा तो लगा, जैसे तूफ़ान से गुज़रा..।
बहुत अंधेरा था, तेरी इन गलियों में..
ठोकरों के साथ, बस अनुमान से गुजरा..।
उसकी जुबां पर बस, मुहब्बत के गीत थे..
भंवरा था, जो दिल के गुलिस्तां से गुज़रा..।
सिकन्दर को भी, ज़िंदगी का फलसफा आ गया..
सारे जहां के बाद, वो जब हिन्दुस्तान से गुज़रा..।
पवन कुमार "क्षितिज"