कापीराइट गजल
हमने देखा है खुशी को गम में ढ़लते हुए
हमने देखा है किसी को गम में जलते हुए
कौन पौंछेगा अब इन की आंखों के आंसू
हमने देखा है जमाने को रंग बदलते हुए
किस ने देखे हैं भला, उन के पैरों के छाले
हमने देखा है उन्हें तब धूप में चलते हुए
गैर, तो गैर थे अपनों से,भी बढ़ गई दूरी
हम ने देखा है उन को, दुआएं करते हुए
इलाज और दवा उनको वक्त पर ना मिले
हम ने देखा है किसी को, जेब भरते हुए
छूना भी अब मुनासिब, नहीं समझता कोई
छुपा लेते हैं चेहरा, घर से निकलते हुए
आखरी रस्म भी अपनों की निभा नहीं पाए
छुप के बैठे थे घरों में, मौत से डरते हुए
दो गज की दूरी यादव, तुम बनाए रखना
वर्ना पछताओगे तुम ये दम निकलते हुए
- लेखराम यादव
( मौलिक रचना )
सर्वाधिकार अधीन है