किसी को राज़ चाहिए
किसी तो ताज़ चाहिए
किसी को धन दौलत
तो किसी को प्यार
दुलार सम्मान चाहिए..
अरे केवल अधिकारों की
बातें करने वालों क्या तुम्हें
नहीं हिंदुस्तान चाहीए!
आज़कल लोग अधिकारों की
बातें करते करते स्वार्थी हो गए।
सिर्फ़ लालच लोलुपता में सब
जकड़ गए।
क्या केवल ज़मीनी आजादी हीं
आज़ादी है?
हम पंथवाद जातीवाद भ्रष्टाचार अपराध
संप्रदायवाद से जकड़ते जा रहें हैं
और झूठ मूठ के आज़ादी आज़ादी
चिल्ला रहें हैं।
याद रख्खो..
जब तक ना मिटेंगें ये भ्रष्टाचार , अपराध ,
जातिवाद के ये पाप भारत से
तब तक ना हम आज़ाद होंगें
बस यूहीं साल दर साल इन्हीं
खोखली नारों में ऐंव हीं खुश होते रहेंगे
और देश के दुश्मन अपनी खतरनाक मनसूबों में कामयाब होते रहेंगे
लड़कर हम सभी को आपस में
अपना उल्लू सीधा करतें रहेंगे
और एक दिन ये बाहरी ताकतें
हमें हमारे हीं देश से बाहर कर देंगें।
इसलिए करता है आनंद अनुरोध सबसे
कि अभी भी वक्त है सब एक हो जाओ
ना उलझकर इधर उधर की फिजूल बातों में सब एक हो जाओ
देश को आगे के जाओ
तभी हम सब आज़ाद कहलाएंगे
तभी सही मायने में हम सब भारतवासी
स्वाधीनता दिवस मना पायेंगे..
तभी सही मायने में हम ज़िंदा और आबाद कहलाएंगे
तभी सही मायने में हम स्वाधीनता दिवस मनाएंगे...

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




