जबसे किसी निगाह में हम अच्छे नहीं रहे
लगता है अपने आप में हम सच्चे नही रहे
घोंसले से बाहर जब फुदकते हैं बार बार
पर पा गए हैं नये परिंदे अब बच्चे नहीं रहे
हर वक्त दिखाते थे यहां झूठी अकड़ जो
टूटी है उनकी शान के अब लच्छे नहीं रहे
वो दास ढो रहे हैं यहां सैलाब आँसुओ के
लगता है हाथ में कलम सर बस्ते नहीं रहे
इंसा की जिन्दगी की कहानियाँ नईनई हैं
सुख बहुत महंगे हुए हैं अब सस्ते नहीं रहे II

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




