वो लोग… बहुत सलीके से तोड़ते हैं,
बातों में मिठास रखकर, निगाहों में खालीपन लेकर।
वो कभी सीधे वार नहीं करते,
बस थोड़ा-थोड़ा हटते हैं —
जब तक तुम अकेले गिर न जाओ।
वो कहते हैं, “मैंने कुछ कहा भी तो नहीं था”,
और तुम सोचती रह जाती हो —
शब्द नहीं थे, पर सन्नाटा तुम्हारी छाती चीर गया था।
वो लोग ऐसे होते हैं —
जो दर्द देकर भी ख़ुद को बेचारा बताते हैं,
और तुम्हें — संवेदनशील, ज़्यादा सोचने वाली,
या ‘dramatic’ क़रार दे देते हैं।
वो खुद को आईना समझते हैं,
और तुम्हें धुँध —
क्योंकि तुम्हारा रोना,
उनकी कहानी में फिट नहीं बैठता।
और जब तुम थककर, टूटकर, दूर होने लगती हो,
तब वो कहते हैं —
“बताओ न, आख़िर मैंने किया ही क्या है?”
ये सवाल नहीं होता,
ये आरोप होता है —
कि तुम ही ग़लत हो,
तुम ही कमज़ोर हो,
तुम ही ‘ज़्यादा’ महसूस करती हो।
वो लोग… वही होते हैं,
जो अपनी मासूमियत से तुम्हें गुनहगार बना देते हैं।

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




