हाल को दफ़नाया औरों की खुशहाली के लिए।
झट से पसीज जाते रहे ज़रूरत बहाली के लिए।।
आदत सुधारी नही सहानुभूति अब भी कायम।
मगर कुछ फूल मुरझाए बेवक्त दलाली के लिए।।
हम भी कितने नर्म दिल बस दूर हो गए 'उपदेश'।
फैंकते रहते ग़ज़ल रूपी निवाले मछली के लिए।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद