हे माते! सरस्वती
हे माते! सरस्वती,
तुझको है वंदन मेरा ,
दे आशीष मुझे,
तन-मन अर्पण करूँ तुझे ,छल-कपट से दूर रहूं,
पढ़ने को पुस्तक मजबूर रहूं,स्वच्छ मन की बगिया से तोड़ सुमन तेरे चरणों में डालूँ, विद्यादान के अतिरिक्त ना तुझसे कुछ माँगू,
प्रेम से पगी वाणी,
मानव-सेवा ही बस मैंने ठानी ,ले सकूं ज्ञान तेरे पास हो जितना ,हे वीणावादिनी कर दे तू इतना ,जीवन में अज्ञान के बादल जब छाएं,
बीच भंवर जब कुछ समझ न आएं, शीश झुका स्मरण करूँ तेरा ,हे माते! सरस्वती तुझको है वंदन मेरा..
...✍️कृति मौर्या