इस दौर के हालात का मंजर छुपाऊँ क्या।
हकीकत आज के इंसान की बताऊँ क्या।।
चेहरे पर खुशी और दिल के गम की पर्तें।
सुनने वाले आतुर लग रहे उसे छुपाऊँ क्या।।
हवा बदली मौसम भी बदल रहा धीरे-धीरे।
बोलो इस बदलाव को भागीदार बनाऊँ क्या।।
जिस मिट्टी में पली और अब जवान हो गई।
दिल चाह रहा उसके कर्ज को पटाऊँ क्या।।
नही थी प्यार की एक बूँद जिसकी रवानी में।
बाढ़ आई खुशियो की ये कहानी सुनाऊँ क्या।।
अब ईशा की बुलंदी हूँ बन गई हूँ उनका साया।
रहनुमाई की हकीकत 'उपदेश' सुनाऊँ क्या।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद