हर घड़ी, पहर-पहर,
हर गली, शहर-शहर,
जाने कहाँ, जाने किधर,
ढूँढती है तुझे मेरी नज़र।
रुक जाए कदम सहसा,
कोई दिखे जो तुम-सा,
फिर देखूँ मैं इधर-उधर,
ढूँढती है तुझे मेरी नज़र।
बैठूँ जो यादों की छाँव में,
बहती नदी पर नाँव में,
देखूँ मैं जिधर - जिधर,
ढूँढती है तुझे मेरी नज़र।
🖊️सुभाष कुमार यादव