मरुधरा से दूर मध्य जिलों की निम्न दक्षिण पूर्व भूमि पर कोई गढ़ नहीं है मेरा , बस वहाँ टपाक से आना पड़ा, हाँ! आना पड़ा। कभी लगता है कि बचपन में रोटी के टुकड़े, बिस्कुट, एक रूपए या पाँच रूपए की चीजों के लिए लड़ रहा था, कुछ खट्टी, कुछ मीठी और कुछ चटपटी खाने के सामान और खिलौने। अपनी बारी वाले खेल और पहली पारी वाले केवल अपनी पारी के खेल, सब खेल गया और टपाक से चला गया, सब का सब मुझसे जैसे छीन लिया हो, बचपन कोरा कागज रह गया जिस पर मैं न कुछ लिख सका और किसी ने उसे गीला कर छिन्न-भिन्न कर दिया हो, अब टपाक से जीवन आगे बढ़ा ना जाने क्या हुआ घर के सब तिलमिला गए हो, सब ने सब के सब अनजान जगह भेजना चाहते थे, वो था स्कूल और एकदम कूल और टपाक से सारे हट्टे कट्टे जवान और वीरांगना महिलाएं मेरे हाथों के, होंठों के और कपड़ों के पीछे पड़ने लगे, कहते हैं टपाक कपड़ा बदल, होंठों से बोल और लिख , अच्छा लिख लेकिन उन्होंने माथे पर लकीरें देखी कहा ये अब काम करेगा, बोले अब इसको रोज जगाओ और टपाक का जीवन याद करवाओ, टपाक का जीवन अभी टपाक से चल रहा है।।

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




