रिश्ता तुम्ही जोड़ते हो
और फिर उस रिश्ते को तोड़ते भी तुम्ही हो,
क्या ये मेरे मान सम्मान का अपमान नहीं। (2)
हम वो ख़्वाब हैं जो देखे कोई तो
हक़ीक़त में बदल जाते हैं,
तुम हमारी फितरत से अभी वाक़िफ़ नहीं।
जानते हैं एक दिन ज़रूर पहचान जाओगे
मेरी काबिलियत को, (2)
और सोचोगे कि समझा मैंने जिसे अपने क़ाबिल नहीं।
उसके क़ाबिल तो था मैं ख़ुद ही नहीं,
पछताओगे उस दिन तुम मुझे ठुकरा के
क्या ये तुम्हें पता नहीं।
कुछ पश्चाताप तो अभी ही दिख रहा है
तुम्हारी आंखों में, (2) तुम्हारे दिल में भी है पछतावा अभी।
फिर क्यों लोगों की कहा सुनी में
तोड़ा तुमने वो रिश्ता जो मैंने तुझसे कभी जोड़ा ही नहीं,
क्या ये खुद तुम्हें भी पता नहीं।
बचपन में कभी साथ खेले थे हम
क्या तुम्हें वो भी याद नहीं,(2)
जो बनाने चले थे तुम मुझसे रिश्ता
आखिर वो तो टूटना ही था।
तुम्हें जब बचपन के उस रिश्ते का ही लिहाज़ नहीं,
तो फिर इस रिश्ते को क्या समझते तुम।
"रीना कुमारी प्रजापत"