रचना वो रचना क्या आख़िर,
जिसमें जीवन ना जवानी हो ।
कहने-सुनने में सरल हो बहोत,
समझने में ज़रा आसानी भी हो ।
बागों की महक शामिल हो ही,
माटी का अपनापन भी हो !!
मौलिकता की हरियाली तो हो,
थोड़ी जीवन की रवानी भी हो !!
जगे चाहत जीने की यारो,
टूटे दिल को आराम मिले !!
भर जाये पुराने ज़ख्म कोई,
रचना थोड़ी मस्तानी भी हो !!
पढ़के जिसको है चैन मिले,
प्यासे मन को राहत भी मिले !!
हो छूमंतर परेशानी सब,
ज़रा इश्क़ की सुनामी भी हो !!
सर्वाधिकार अधीन है