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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra The Flower of WordThe novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayara By Reena Kumari Prajapat

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The novel 'Nevla' (The Mongoose), written by Vedvyas Mishra, presents a fierce character—Mangus Mama (Uncle Mongoose)—to highlight that the root cause of crime lies in the lack of willpower to properly uphold moral, judicial, and political systems...The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

                    

गुरु चालीसा (शिक्षक दिवस विशेष)

यह कविता इसलिए खास है क्योंकि इसके लेखक अभिषेक मिश्रा अपने लेखनी विद्या का सारा श्रेय अपने गुरु को मानते हैं, इसलिए ये इस वर्ष अपने जन्मोत्सव पर अपने गुरुओं के सम्मान में एक छोटी सी रचना लिखें हैं .....

एक शिक्षक को सबसे ऊंचा स्थान दिया जाता हैं, क्योंकि ये एक ऐसा अनमोल रत्न हैं जिसमें एक अनपढ़ को महाविद्वान् बनाने कि छमता होती हैं, ये एक दीपक कि भाती खुद अंधकार में रह कर हमारे जीवन में उजाला भर देता है, ऐसे इंसान को मैं सादर प्रणाम करता हूं और हमेशा इनकी गुण गान करता रहूंगा इसकी सपथ लेता हूं।

हालांकि शिक्षक के लिए कोई दिन विशेष नहीं होता इनके लिए हर दिन विशेष हैं लेकिन फिर भी हम सभी 5 सितंबर को डॉ० सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी के जन्मदिन को राष्ट्रीय शिक्षक दिवस के रूप में मनाते है, जो शिक्षकों के योगदान को सम्मानित करता है। इसी अवसर पर मैं एक छोटी सी प्रस्तुति अपने काव्य के माध्यम से प्रस्तुत करना चाहूंगा जिसका शीर्षक हैं "गुरु चालीसा" क्योंकि हम आज जिस भी क्षेत्र में अपनी सेवा दे रहे हैं वो इनकी ही मेहरबानी है।

जय जय जय शिक्षा के दाता।
कृपा करो आशीष प्रदाता।।

तुम सागर हों गुरु ज्ञान के।
सबको देते हों ज्ञान अपार।।

बुद्धि विवेक जो भी चाहें।
गुरु सेवा में ध्यान लगाए।।

गुरु मंत्र जो कोई भी जपता।
जीवन में सफल सदा रहता।।

अनपढ़ को भी ज्ञान देकर।
तुम बना देते हो यू विद्वान।।

तुम पर हैं हम सबको गुमान।
तुम ही करते हों ज्ञान प्रदान।।

अनपढ़ को जो विद्वान बना दे।
धर्म कर्म का पूरा पाठ पढ़ा दे।।

भक्ति भाव का दीपक जलाते।
नेक धर्म करने कि शिक्षा देते।।

अंधकार को तुम दूर भगाते।
ज्ञान कि ज्योति हों जलाते।।

सही गलत का पहचान सिखाते।
शिक्षा प्राप्ति का संकल्प दिलाते।।

हैं धरती पे तुम्हारे कई अवतार।
समय-समय पर करते हों प्रचार।।

बन चाणक तुम राष्ट्र बनाते।
चंद्रगुप्त को राज दिलाते।।

महामूर्ख कालीदास जैसे को।
अनपढ़ से महाविद्वान बनाते।।

हे शिक्षक तुम हों योगी।
मत बनना वेतन भोगी।।

गुरु बिना कोई ज्ञान नहीं।
न जीवन में कोई पहचान।।

गुरु से मिले ज्ञान कि छाया।
जो जीवन को नई दिशा देता।।

गुरु से जो भी दूरी बनाएं।
जीवन भर वो पछताएं।।

संकट में जो हंसना सिखाए।
जो धैर्यता का पाठ पढ़ाए।।

जिसे देख खुद सर झुक जाए।
सच्चा शिक्षक वही कहलाएं।।

गुरु होता हैं ज्ञान का सागर।
जो सबको बाटे ज्ञान बराबर।।

निर्धन हों या हों धनवान।
गुरु देता है ज्ञान समान।।

गुरु का ज्ञान हैं जग में अनमोल।
इसलिए मिलता हैं ऊंचा स्थान।।

गुरु ज्ञान बिन इस धरती पर इंसान।
हर कोई हैं बेजान, अधूरा हैं इंसान।।

कलम भी तब नतमस्तक हुआ।
जब गुरु के गुण गान लिखाए।।

लिखते लिखते थक गया।
अभिषेक गुरू गुण गान।।

बोलों सब गुरु महाराज कि जय।
बोलों सब गुरु चालीसा कि जय।।

- अभिषेक मिश्रा (बलिया)




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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (1)

+

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' said

Bahut sundar prastuti evam prasansneey vichar Happy Teachers Day sir

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