ग़ज़ल में ग़ज़ल की बात हो जाए,
मतला- मक़्ता सब साथ हो जाए।
लिखूँ मैं शेर में उसकी तारीफ़ तो,
सुन दिल चाहे मुलाकात हो जाए।
यूँ धड़कते, दोनों के सीने में दिल,
काफिये से, सब जज्बात हो जाए।
मैं और तुम मिल के हों जाएँ हम,
रदीफ़ सा ये साथ सबात हो जाए।
मैं लिखता नहीं मक़्ता में तखल्लुस,
दे कुछ ऐसा, जो प्रख्यात हो जाए।
🖊️सुभाष कुमार यादव