एक उम्र खर्च कर दी, ये समझने में,
सुकून बड़ा था बच्चा बन के रहने में।
अब! बोलने से पहले सोचना पड़ता है,
तब कहाँ सोचते थे कुछ भी कहने में।
तैयार कर माँ कहा करती, राजा बेटा,
समय बीत गया वैसा सजने सँवरने में।
पिता के कँधों पर बैठ कर देखा जहाँ,
सुंदरता ही दिखती, वहाँ से देखने में।
पास था तो ये बात समझ नहीं पाया,
कितना कुछ खोया मैंने, दूर रहने में।
🖊️ सुभाष कुमार यादव