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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayra By Reena Kumari PrajapatDastan-E-Shayra By Reena Kumari Prajapat

कविता की खुँटी

                    

घर की चाहत

मैंने ईंटें जोड़ी थीं,
पर दरवाज़ा खुला रखा,
मैंने छत डाली थी,
पर चाँदनी का रास्ता रोका नहीं।

मैंने चाहा था—
मकान नहीं, एक घर हो,
जहाँ दीवारें सिर टिकाने को हों,
न कि दूरियाँ खींचने को।

जहाँ खिड़कियों से
हवा सिर्फ पर्दे न उड़ाए,
बल्कि कहानियाँ सुनाए
उन गलियों की,
जहाँ मेरा बचपन छूट गया।

मैंने दीवारों पर रंग नहीं,
हाथों की छाप छोड़ी,
छत पर साया नहीं,
खुले आसमान का हक़ रखा।

पर यह शहर…
पत्थरों को पहचानता है,
धड़कनों को नहीं।
यहाँ ईटे जुड़ती हैँ शीना चौड़ा करने को,
उसमे घर बसाने का हुनर खो चुका हैं।

मैं मकानों के जंगल में
एक घर की तलाश में भटकता रहा,
जहाँ दीवारों के कान न हों,
पर दिल की धड़कन सुनी जाए।

जहाँ लौटने पर सन्नाटा न हो,
बल्कि किसी की साँसें
दरवाज़े तक चली आएँ…

जहाँ शाम की रसोई में
बर्तनों की खनक
हँसी के शोरगुल में घुल जाए,
जहाँ खिड़कियाँ बाहर नहीं,
अंदर खुलती हों।

जहाँ दीवारें दिल न बाटती हों,
बल्कि उनमें दुआओं की नमी हो।

मैंने मकान नहीं,
एक घर चाहा था…
जो चार दीवारी से कहीं बड़ा हो

-इक़बाल सिंह “राशा“
मानिफिट, जमशेदपुर, झारखण्ड,




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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (12)

+

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' said

Waah bahut khoob Shriman...Bhavvibhor hogaye aapko padhkar.

Lekhram Yadav said

बहुत खूब, वाकई बहुत बङा घर है आपका, आपको सादर नमस्कार

इक़बाल सिंह “राशा“ said

धन्यवाद अशोक जी

इक़बाल सिंह “राशा“ said

धन्यवाद लेखराम जी

Updesh Kumar Shakyawar said

क्या बात...आपको सादर प्रणाम 🙏

Shiv Charan Dass said

एक सच्चे घर की तलाश करती सच्ची रचना

इक़बाल सिंह “राशा“ said

धन्यवाद उपदेश ji

इक़बाल सिंह “राशा“ said

धन्यवाद शिव चरण दास जी

Supriya sahu said

बहुत ही खूबसूरत, लाज़वाब एवं शानदार रचना सर जी 😊👌, आपको सादर प्रणाम 🙏

इक़बाल सिंह “राशा“ said

सुप्रिया जी धन्यवाद

वन्दना सूद said

sir वाह क्या खूब लिखा आपने 👏👏हर एक पंक्ति दिल को छूती है और आज की सच्चाई बयान करती है 🙌🏻🙌🏻

इक़बाल सिंह “राशा“ said

बहुत बहुत धन्यवाद वंदना जी

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