Newहैशटैग ज़िन्दगी पुस्तक के बारे में updates यहाँ से जानें।

Newसभी पाठकों एवं रचनाकारों से विनम्र निवेदन है कि बागी बानी यूट्यूब चैनल को सब्सक्राइब करते हुए
उनके बेबाक एवं शानदार गानों को अवश्य सुनें - आपको पसंद आएं तो लाइक,शेयर एवं कमेंट करें Channel Link यहाँ है

Show your love with any amount — Keep Likhantu.com free, ad-free, and community-driven.

Show your love with any amount — Keep Likhantu.com free, ad-free, and community-driven.



The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra The Flower of WordThe novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

Newहैशटैग ज़िन्दगी पुस्तक के बारे में updates यहाँ से जानें।

Newसभी पाठकों एवं रचनाकारों से विनम्र निवेदन है कि बागी बानी यूट्यूब चैनल को सब्सक्राइब करते हुए
उनके बेबाक एवं शानदार गानों को अवश्य सुनें - आपको पसंद आएं तो लाइक,शेयर एवं कमेंट करें Channel Link यहाँ है

The Flower of Word by Vedvyas MishraThe Flower of Word by Vedvyas Mishra
Dastan-E-Shayara By Reena Kumari Prajapat

Dastan-E-Shayara By Reena Kumari Prajapat

The novel 'Nevla' (The Mongoose), written by Vedvyas Mishra, presents a fierce character—Mangus Mama (Uncle Mongoose)—to highlight that the root cause of crime lies in the lack of willpower to properly uphold moral, judicial, and political systems...The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

                    

घर की चाहत

मैंने ईंटें जोड़ी थीं,
पर दरवाज़ा खुला रखा,
मैंने छत डाली थी,
पर चाँदनी का रास्ता रोका नहीं।

मैंने चाहा था—
मकान नहीं, एक घर हो,
जहाँ दीवारें सिर टिकाने को हों,
न कि दूरियाँ खींचने को।

जहाँ खिड़कियों से
हवा सिर्फ पर्दे न उड़ाए,
बल्कि कहानियाँ सुनाए
उन गलियों की,
जहाँ मेरा बचपन छूट गया।

मैंने दीवारों पर रंग नहीं,
हाथों की छाप छोड़ी,
छत पर साया नहीं,
खुले आसमान का हक़ रखा।

पर यह शहर…
पत्थरों को पहचानता है,
धड़कनों को नहीं।
यहाँ ईटे जुड़ती हैँ शीना चौड़ा करने को,
उसमे घर बसाने का हुनर खो चुका हैं।

मैं मकानों के जंगल में
एक घर की तलाश में भटकता रहा,
जहाँ दीवारों के कान न हों,
पर दिल की धड़कन सुनी जाए।

जहाँ लौटने पर सन्नाटा न हो,
बल्कि किसी की साँसें
दरवाज़े तक चली आएँ…

जहाँ शाम की रसोई में
बर्तनों की खनक
हँसी के शोरगुल में घुल जाए,
जहाँ खिड़कियाँ बाहर नहीं,
अंदर खुलती हों।

जहाँ दीवारें दिल न बाटती हों,
बल्कि उनमें दुआओं की नमी हो।

मैंने मकान नहीं,
एक घर चाहा था…
जो चार दीवारी से कहीं बड़ा हो

-इक़बाल सिंह “राशा“
मानिफिट, जमशेदपुर, झारखण्ड,




समीक्षा छोड़ने के लिए कृपया पहले रजिस्टर या लॉगिन करें

रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (12)

+

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' said

Waah bahut khoob Shriman...Bhavvibhor hogaye aapko padhkar.

Lekhram Yadav said

बहुत खूब, वाकई बहुत बङा घर है आपका, आपको सादर नमस्कार

इक़बाल सिंह “राशा“ said

धन्यवाद अशोक जी

इक़बाल सिंह “राशा“ said

धन्यवाद लेखराम जी

उपदेश कुमार शाक्यावार said

क्या बात...आपको सादर प्रणाम 🙏

Shiv Charan Dass said

एक सच्चे घर की तलाश करती सच्ची रचना

इक़बाल सिंह “राशा“ said

धन्यवाद उपदेश ji

इक़बाल सिंह “राशा“ said

धन्यवाद शिव चरण दास जी

सुप्रिया साहू said

बहुत ही खूबसूरत, लाज़वाब एवं शानदार रचना सर जी 😊👌, आपको सादर प्रणाम 🙏

इक़बाल सिंह “राशा“ said

सुप्रिया जी धन्यवाद

वन्दना सूद said

sir वाह क्या खूब लिखा आपने 👏👏हर एक पंक्ति दिल को छूती है और आज की सच्चाई बयान करती है 🙌🏻🙌🏻

इक़बाल सिंह “राशा“ said

बहुत बहुत धन्यवाद वंदना जी

कविताएं - शायरी - ग़ज़ल श्रेणी में अन्य रचनाऐं




लिखन्तु डॉट कॉम देगा आपको और आपकी रचनाओं को एक नया मुकाम - आप कविता, ग़ज़ल, शायरी, श्लोक, संस्कृत गीत, वास्तविक कहानियां, काल्पनिक कहानियां, कॉमिक्स, हाइकू कविता इत्यादि को हिंदी, संस्कृत, बांग्ला, उर्दू, इंग्लिश, सिंधी या अन्य किसी भाषा में भी likhantuofficial@gmail.com पर भेज सकते हैं।


लिखते रहिये, पढ़ते रहिये - लिखन्तु डॉट कॉम


© 2017 - 2025 लिखन्तु डॉट कॉम
Designed, Developed, Maintained & Powered By HTTPS://LETSWRITE.IN
Verified by:
Verified by Scam Adviser
   
Support Our Investors ABOUT US Feedback & Business रचना भेजें रजिस्टर लॉगिन