आपकी नज़्म पढ़ मेरे चेहरे पे मुस्कान आ गई है,
पढ़ आपकी ग़ज़ल जान में जान आ गई है।
सुबह-सुबह आज बहुत कुछ हो गया साथ मेरे,
उस ग़म को भुलाने में आपकी ये नज़्म मेरे
काम आ गई है।
कहा था मैंने उनसे ऐसा कुछ लिखने को
पर उन्होंने बहुत देर कर दी,
इंतज़ार की सीमा भी अब मेरी ख़त्म होने लगी थी।
अब हालत हद से ज़्यादा बिगड़ने लगी थी मेरी,
तो मैंने कुछ दिनों पहले लिखी आपकी नज़्म
फिर से पढ़ ली।
🖋️ रीना कुमारी प्रजापत 🖋️