कोमल, कपोल, कलियां, किसलय
पुष्प बन मुस्काना तुम
सुगंध अपनी बहारें अपनी
गंधमादन गिरीं की मलय पवन
बन बिखर जाना तुम
मर्यादा में रहकर गीत विजय
के अपने रच जाना तुम
फिर यह जहां तुम्हारा है
हर परिवेश हर परिधान तुम्हारा है
जिस संस्कृति में आंखें खोली
उसको आगे बढ़ाना तुम
कोई उंगली उठ ना पाये तुम पर
संस्कारों की ऐसी गंगा बहाना तुम
निज सभ्यता,संस्कृति का
परचम ऊंचा पहरा कर
विश्व पटल पर छा जाना तुम
उठ जागो पूरब की ओर देखो
पश्चिमी सभ्यता का त्याग करो तुम
उदीयमान होता है सूर्य जहां से
उस दिशा का जयगान करो तुम
अस्तांचल के सूर्य सा ना स्वयं
को गतिमान करो तुम
मातृभूमि पर हो जब संकट
लक्ष्मीबाई सा हुंकार भरो तुम
पन्नाधाय सा त्याग तुममें
जीजाबाई सी मात बनों तुम
सीता का आदर्श हो
पतिव्रत में सावित्री तुम
लीलावती का भाष्य गणित
गार्गी की हो विवेचना तुम
गौरवशाली है अतीत तुम्हारा
इसक़ी उंगली थाम चलों तुम
मान हो तुम हमारा अभिमान हो
जाओ सम्मानितइतिहास रचो तुम
✍️#अर्पिता पांडेय