मुआवज़ा उतना ही मिलता है,
जितना बाजार-मूल्य से तय हो;
बेशक गुज़ारी एक उम्र हो,
खून-पसीने को माटी में मिलाकर
बनाया घर हो या खेत हो—
खून का, पसीने का मूल्य तय नहीं है,
बाजार में इनकी कीमत नहीं है।
मुआवज़ा पेड़ों पर लटके घोंसलों
का भी नहीं मिलता, टूटे हुए
अण्डों का, मरते नवजात खगों का
भी नहीं मिलता; हरी-भरी
घास जो जीवन होती है कुछ
जीवों का, कुछ आश्रय जो होते हैं
पेड़ों के झुरमुट तले—मगर मुआवज़ा
उनका भी नहीं मिलता।
हवाओं को भी मुआवज़ा नहीं मिलता;
हवा, पानी और जीवन का कोई अधिकार
ये देश की खातिर है—जिसका सही
अर्थ पूँजीपति समझते हैं। उन्हें हक़ है
सारे आश्रयों को खरीद लेने का
मात्र एक रुपये में।
मुआवज़ा तो देश भरेगा; देश को
पूरा मूल्य लेने का अधिकार नहीं है।
जिन्हें जो मिला, उन्हें भी उतना ही
तय है; बाकी पर उनका अधिकार
है—जिनका नाम लेना मेरा अधिकार नहीं है।

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




