फूल खिलते ही तबाह हो जाते हैं बेचारे
चमन में कांटे हो जाते हैं शहंशाह हमारे
रुख़सत हुईं बहारें वीरांनियों का मंजर है
तितलियाँ गायब हैँ भवरें नहीं आते बेचारे
बुलबुलें खामोश हैं, चुपचाप बैठे हैं परिंदे
पेड़ की शाखों पे ,उल्लू नजर आएंगे सारे
अपना सीना तानके चल रहें है आज कल
चेहरा उजला है मगर कारनामें काले सारे
चाहे जितना नीचे, गाड़िये जमीन के अंदर
छुपते नहीं गुनाह ,खुदही उग आते हैं हमारे
दो चार लफ्ज कहके ही ये अमर हो जाते हैं
कई शायर हैं अदब, की किस्मत के सितारे
दास रिंदो की बढ़ी अब तिश्नगी दीदार की
देख साकी यूँ पिलाये अपने हाथों जाम सारे II