एक शहर के महल में
ठीक उसी के सामने वाले बगल में
सुन्दर दो बकरे रस्सी से बांधे पड़े हैं
दो में से एक बकरा खाने को दस आदमी खड़े हैं
दस आदमी में किसी में भी न थी दया
उन में से एक बकरे के पास आया
उसने रस्सी से बांधा बकरा खोला
फिर उसे हम तुझे खाएंगे बोला
दूसरे ने उसे पकड़ जमीन पर लेटाया
तीसरे ने फिर उसे जोर से दबाया
चौथे ने धार वाली हथियार से गर्दन पर मारा
बकरा थोड़ी देर छटपटा कर मर गया बेचारा
ये हाल में भी आंसू गिराया नहीं किसी ने
वहां जितने भी लोग थे सभी ने
बकरे का छोटा छोटा पीस काटा
आपस_आपस में वे सबने बांटा
घर घर ले जा कर सभी ने पकाया
फिर सब ने मास उसका खाया
बकरे की न जुर्म न कसूर
वह तो था बिलकुल बेकसूर
मगर आदमी ने उसका मास खा खा कर
उसकी हड्डी पसली चबा चबा कर
लेता रहा बहुत मजा
आखिर बकरे को क्यों दिया सजा?
आखिर बकरे को क्यों दिया सजा.....?
----नेत्र प्रसाद गौतम